बिलासपुर विधायक शैलेष पांडेय का बिफरना क्या साबित करता है?

पुलिस विभाग पर आमतौर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगता रहता है। यह और भी सामान्य हो जाता है, जब विपक्ष यह आरोप लगाता है। लेकिन सत्ता पक्ष का विधायक अपने ही गृहमंत्री के सामने पुलिस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाए और ये कहे कि इन लोगों को हर काम का रेट लिस्ट लगा देना चाहिए, तो मामले की गंभीरता को समझने की जरूरत है। ये समझने की जरूरत है कि वाकई बिलासपुर पुलिस आकंठ भ्रष्टाचार में डूब गई है या फिर विधायक का कोई भी काम पुलिस नहीं कर रही।

अगर बिलासपुर पुलिस पर भ्रष्टाचार के मामलों की बात की जाए, तो यह सही है कि पिछले कुछ दिनों में जिस तरह की तरंगें बिलासपुर के जनमानस में उठी हैं, वह बेहद नकारात्मक है। आम आदमी की पहुंच से पुलिस दूर है। कोयला, सट्‌टा और कबाड़ी तीन मुख्य केंद्र है, जिनके ईर्द-गिर्द पुलिसिंग ज्यादा दिखी है। क्राइम डिटेक्शन रेट के बारे में बात करने को कोई तैयार नहीं है। बिलासपुर पुलिस की छवि इन दिनों पहले से खराब ही हुई है। बेहद सामान्य आरोप कि बिना पैसे के कोई काम नहीं, इसे विधायक के आरोप ने और ज्यादा हाईलाइट कर दिया।

अब बात करें, बिलासपुर के विधायक शैलेष पांडे के आरोप की। उन्होंने उस वक्त आरोप लगाए जब खुद गुृह मंत्री ताम्रध्वज साहू मंच पर थे। शैलेष पांडे ने चीख-चीख कर कहा- इस थाने के बाहर हर काम का रेट लिस्ट लगा देना चाहिए। इस थाने के बाहर सब्जी वाला भी अपनी दुकान नहीं लगा सकता, उसको सब्जी तक देनी पड़ती है। कारोबारी पुलिस से परेशान हो चुके हैं। उन्होंने इतना सुनाया कि गृहमंत्री को बीच में बोलना पड़ा कि आप जो शिकायत करना चाहते हैं तो लिखित में दीजिए, मैं जांच करवा दूंगा।

विधायक शैलेष पांडेय ने गुस्से में जो भड़ास निकाली है, उन्होंने बिलासपुर ही नहीं, पूरे प्रदेश के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। सत्ता में होते हुए भी उन्हें चित्कार करना पड़ रहा है, ये या तो सरकार की नाकामी है या फिर विधायक ही राजनीति का शिकार हैं। पुलिस के प्रति उनका आक्रोश इतना स्वाभाविक नहीं हो सकता। न जाने कितने कड़वे घूंट पी-पीकर यह वेदना उनके हृदय से निकली है। न जाने कितने अपमान सहने पड़े होंगे कि सार्वजनिक मंच पर पुलिस पर बरसे होंगे। ये सही है कि विधायक शैलेष पांडेय ने जनता के सवाल जनमंच से उठाकर ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है, जो हाल-फिलहाल में देखने को नहीं मिला, इसके लिए हिम्मत भी चाहिए। इसके लिए विधायक शैलेष पांडेय बधाई के पात्र हैं, लेकिन ये सरकार के लिए भी शुभ लक्षण नहीं है। इससे सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान खड़े होंगे। निश्चित ही पुलिस से इस विरोध की कमाई उन्हें बड़े जनसमर्थन के रूप में मिलेगी, लेकिन आने वाले समय में पुलिस और सरकार से वे कैसे तालमेल बिठाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
वैसे भी सरकार में बार बार जिन दो गुटों की बात सामने आती है, उनमें एक गुट निश्चित ही यह चाहता होगा कि किस तरह सरकार को नीचा दिखाया जाए, कैसे सरकार की खामियों को उजागर किया जाए।

बहरहाल, अगर ऐसी कोई बात नहीं, तो फिलहाल दोनों गुटों या पूरी कांग्रेस को मिलकर पुलिसिंग ही नहीं, ऐसी सभी कमियों को सही करना चाहिए। यकीन मानिए, सत्ता पक्ष के एक विधायक का सरेआम इस तरह आरोप लगाना बिल्कुल भी छोटी घटना नहीं है।