महाभारत 2024: यादवों के आन और अपमान की 3 कहानियां… पढ़िए और सोचिए… क्या हम वही श्रीकृष्ण के ‘कुल’ के हैं, जिन्होंने बिना लड़े पांडवों को विजयी दिलाई… फिर तय कीजिए खुद के और अपनी भावी पीढ़ी का भविष्य…
www.aajkal.info आज आपको तीन कहानियां बताने जा रहा है। ये कहानियां बड़ी सीख देने वाली हैं। सीख इसकी कि हम क्या हैं। सीख इसकी कि हमारा अस्तित्व क्या है। सीख इसकी कि कलयुग में हमारा किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। सीख इसकी कि हम किस ‘कुल’ के हैं। सीख इसकी कि हमारी ताकत क्या है। सीख इसकी कि अब तक हमें कौन अपने हाथों से कठपुतियों की तरह नचाते आ रहा है। सीख इसकी कि कठपुतियों की तरह नचाने वालों ने हमारे लिए क्या किया? सीख इसकी कि हम एक हो जाएं तो क्या कर सकते हैं?
कहानी- 1
कहानी बहुत पुरानी है। एक यादव कुटुम्ब में सालों की मन्नत मांगने के बाद एक पुत्र पैदा हुआ। घर के मुखिया का गांव में खूब मान-सम्मान था। छोटे से लेकर बड़े घरों में उठना बैठना था। बड़े घर के बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ते थे। यादव पिता ने भी अपने बेटे को बड़े स्कूल में दाखिला दिलाकर ऊंची तालीम दिलाई। पर बड़े घरों के बच्चों के साथ पढ़ते-पढ़ते बेटे की आदत कब बिगड़ गई या बिगाड़ दी गई पता ही नहीं चला। समय के साथ पिता गुजर गए। घर की जिम्मेदारी आने पर बेटा भी बखूबी निभाने लगा, लेकिन बड़े घर के दोस्तों ने कहा कि इतनी संपत्ति होने के बाद भी नौकरों की तरह काम करते हुए शर्म नहीं आती। उसे चिढ़ चढ़ाया। झांसे में लिया। आदत से बिगड़ैल बेटा को झांसे में आने से देर नहीं लगी। दोस्तों के कहने पर उसने धीरे-धीरे कर अपनी संपत्ति बेच डाली। हालात यह हो गया कि उसके पास एक समय भरपेट भोजन खाने को भी नहीं बचा। बड़े घर के दोस्तों ने उसकी मदद सिर्फ इतनी की कि उसे अपने घर में गाय चराने के लिए रख लिया। पारिवारिक मजबूरी के कारण वह गायब चराता। मवेशियों को धोता। गाय से दूध निकालता और मालिक को देता। बस यही उसकी दिनचर्या बन गई। उसकी हा
लत देखकर उसके दोस्त उसके खूब मजाक उड़ाते। कहते, पढ़ने लिखने में तो हमारे बराबर हो सकते हो, पर चालाकी में तुम वहीं के वहीं रहोगे, क्योंकि जिसकी बुद्धि घुटने में है, वह सिर पर कैसे आएगी। तुम्हारे पिता को छोड़कर तुम्हारे दादा, परदादा, पूर्वज हमारे यहां यही काम करते थे। अब तुम और तुम्हारी पीढ़ी भी यही काम करेगी, तुम्हारा बेटा भी हमारे घर में चाकरी करेगा। यह बात यादव बेटे के मन में घर कर गई। उसने प्रण लिया कि वह इन रईसजादों को सबक सिखाकर रहेगा। नहीं सिखाया तो श्रीकृष्ण का वंशज नहीं। उसने खूब मेहनत की। पेट काटा, भूखा रहा। उसकी पत्नी ने भी उसका पूरा साथ दिया और अपने बेटे को खूब पढ़ाया। उसकी प्रण रंग लाई और बेटा कलेक्टर बन गया। जिसे देखकर अब उसके वही दोस्त उसे और उसके बेटे को सलाम करते हैं कि नमस्कार कलेक्टर के पिता और कलेक्टर साहब।
कहानी का सार यही है कि यादव कुल में जनम लेने वाले को अगर किसी ने चिढ़ चढ़ा दी और यादव ने कोई चीज ठान लिया तो इस युग में अंसभव वाली बात कुछ नहीं है। इसलिए जागो यादव, हर हर माधव…।
कहानी-2
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश याद के बचपन के पन्ने बताते हैं, जब पिता मुलायम राजनीति में घनघोर व्यस्त रहा करते थे तो अखिलेश की घर और स्कूल की पढ़ाई की देख-रेख शिवपाल और उनकी पत्नी सरला ही करती थीं. राजनीति के बीहड़ों में लड़ते हुए जब मुलायम सिंह की जान तक को ख़तरा था तो उन्होंने तब अपने एक मात्र पुत्र अखिलेश को सुरक्षा कारणों से स्कूल से निकाल कर घर बैठा दिया था. साल 1980 से 1982 के उन दो सालों में चाची सरला उसे घर पर पढ़ाया करती थीं. अखिलेश की मां बीमार रहती थीं. सन 1983 में जब अखिलेश को धौलपुर मिलिट्री स्कूल में भर्ती कराया गया तो चाचा शिवपाल ही उन्हें इटावा से वहां लेकर गए थे. भर्ती की सारी औपचारिकताएं शिवपाल ने पूरी कीं क्योंकि मुलायम को फ़ुर्सत नहीं होती थी. स्कूल में अखिलेश के गार्जियन शिवपाल और सरला यादव थे. चाचा-चाची ही अखिलेश से मिलने धौलपुर जाया करते थे. साल 2009 के लोक सभा चुनाव में सपा के ख़राब प्रदर्शन के बाद अखिलेश ने समाजवादी पार्टी में ज्यादा रुचि लेनी शुरू की. पार्टी की छवि बदलने की छोटी-छोटी कोशिशें उन्होंने करनी चाहीं. तब शिवपाल यादव पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे. राजनीति में बहुत अनुभवी नहीं होने के बावजूद एक जुनून उनमें था. मुलायम सिंह ने जो भी सोचा हो, उसी साल (2009 में) पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद शिवपाल से लेकर अखिलेश को दे दिया.
अखिलेश पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ख़ूब सक्रिय हुए. उन्होंने अपनी युवा टीम खड़ी की और सपा का रूपांतरण शुरू किया. शिवपाल ने कोई आपत्ति या नाराज़गी तब व्यक्त नहीं की लेकिन इसे अखिलेश के साथ उनके रिश्तों में खटास पैदा होने की शुरुआत मान सकते हैं. साल 2012 के विधानसभा चुनावों में अखिलेश की ख़ूब चली. साल 2012 के चुनाव में सपा को विधान सभा में पूर्ण बहुमत मिलने का श्रेय अखिलेश के हिस्से आया और बिल्कुल अचानक ही मुलायम ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाना तय किया. शिवपाल ने मुलायम के इस प्रस्ताव का सख्त विरोध किया. विरोध का नतीजा यह हुआ कि चाचा शिवपाल ने अलग पार्टी बना ली. विरोधी भी यही चाहते थे और नतीजा सबके सामने है। यादवों के गढ़ यूपी में अब दूसरों का राज है। चाचा-भतीजे की लड़ाई में यादवों ने एक राज्य खो दिया। अगर आज ये एक रहते तो यूपी आज भी यादवों का होता।
इस कहानी का सार यही है कि जब दो यादव आपस में लड़े हैं, फायदा किसी तीसरे का हुआ है और नुकसान पूरे यादव समाज का। आज यूपी के यादव बंधु उनके हाथों और जुबानी अपमान हो रहे हैं, जो कभी उनके सामने खड़े होने और मुंह खोलने की हिम्मत नहीं करते थे।
कहानी-3
द्वापर युग में हुए महाभारत से सभी कोई वाकिफ हैं। हर किसी के जुबान पर महाभारत कौरव-पांडवों की शौर्य गाथा है। भीष्म पितामह, दृयोधन, कर्ण, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकूल, सहदेव, अभिमन्यु के बारे में सभी जानते हैं। महाभारत के युद्ध में सभी अस्त्र-शस्त्र चलाए, लेकिन पूरे युद्ध में अकेले श्री कृष्ण हैं, जिन्होंने किसी तरह का अस्त्र और शस्त्र नहीं चलाया, लेकिन महाभारत युद्ध पांडवों को जीता दिया। यह उनकी राजनीति और कूटनीति की मिसाल है। अपने विवेक से उन्होंने धर्म की फिर से स्थापना की और यादव जाति को स्वर्ण अक्षरों में इतिहास के पन्नों में अंकित कराया। आज हर कोई श्री कृष्ण की बुद्धि का लोहा मानता है।
कहानी का सार यही है कि श्री कृष्ण ने जो सोच लिया, उन्होंने वही किया। इतिहास के पन्नों में यादवों का आन दर्ज कराकर हमें सिर उठाकर जीने लायक बनाया… तो क्या अब हम उनके दिए गए इतिहास पर कालिख पोत देंगे। ऐसा करने के लिए कई तरह की साजिश चल रही है, लेकिन यादव बंधु भी अब जागरूक हो गए हैं। वो किसी भी कीमत पर अपनी आन नहीं खोएंगे। यह भी जगजाहिर है, श्री कृष्ण ने अपनी पूरी सेना को कौरवों को दे दिया था, लेकिन वह सेना कौरवों का कुछ काम नहीं आया, क्योंकि सेनापति पांडवों के पास थे। इसी तरह से विपक्ष पार्टी ने यादव की एक सेना को हायर कर लिया है और उसी के दम पर पूरे यादवों को मात देने की सोच रहा है। यह बात हम यादवों को समझना है।
इन कहानियों से लोकसभा चुनाव से लेनादेना नहीं है।