BIG BREKING: अरपा भैंसाझार प्रोजेक्ट: सकरी वितरक नहर के लिए जमीन अधिग्रहण के नाम पर 46 करोड़ का भुगतान, 30 करोड़ रुपए गबन का अंदेशा… 3 करोड़ का पहला मामला फूटा…

बिलासपुर। अरपा भैंसाझार परियोजना की आड़ में राजस्व अफसरों और ठेकेदार ने किस बेरहमी से सरकारी राशि की बंदरबांट की है, इसका नमूना देखना हो तो प्रोजेक्ट के तहत वितरक नहर के लिए बांटी गई 46 करोड़ रुपए से अधिक की मुआवजा राशि की सूची को देखने से ही पता चल जाएगा। सिंचाई विभाग, राजस्व अफसरों और ठेकेदार ने मिलकर यहां करीब 30 करोड़ रुपए का गबन किया है। अभी प्राधिकरण के करीब 3 करोड़ रुपए के गबन का मामला फूटा है। जिसकी जमीन को नहर के लिए अधिग्रहित करना बता रहे हैं, उसकी पूरी बची हुई है। दूसरी ओर, जिस जमीन पर नहर बनाई जा रही है, उस जमीन के मालिक को अब तक मुआवजा नहीं मिला है।

अरपा भैंसाझार परियोजना के तहत तखतपुर तहसील के पटवारी हल्का नंबर 45 रानिमं सकरी में वितरक नहर के लिए कुल 19.95 एकड़ जमीन की जरूरत पड़ी थी। सिंचाई विभाग के प्रस्ताव के आधार पर राजस्व विभाग ने वितरक नहर में जिन किसानों की जमीन रही है, उसका बंटाकन किया, तो पता चला कि 47 कास्तकारों की निजी जमीन इस पर रही है। शासन से स्वीकृत एलाइनमेंट के आधार पर प्रभावित किसानों को नोटिस जारी किया गया। दावाआपित्तयां मंगाई गई। दावाआपित्तयों के निराकरण के बाद 26 जनवरी 2019 28 जनवरी 2019 में अखबारों में अधिसूचना प्रकाशित कराई गई। कोटा एसडीएम भूअर्जन अधिकारी ने 21 जून 2019 को नोटशीट चलाई कि पूर्व में धारा 11 की अधिसूचना में प्रकाशित कुल रकबा 19.95 एकड़ (8.076 हेक्टेयर) भूमि का प्रकाशन की कार्रवाई की जा चुकी है। इसलिए पूर्व में प्रकाशित रकबा में किसी भी प्रकार परिवर्तन नहीं हुआ है। उन्होंने इसे गजट में प्रकाशित करने के लिए राज्य शासन को भेज दिया। अवार्ड पारित होने के बाद शासन से मुआवजा बांटने के लिए करीब 46 करोड़ रुपए गए। इसके बाद राजस्व विभाग, ठेकेदार और जमीन माफियाओं के बीच साजिश का खेल शुरू हुआ है। वैसे तो खेल कई जमीन पर हुआ है, लेकिन हम यहां आपको एक मामला बता रहे हैं।

ऐसे हुआ 3 करोड़ रुपए का खेल

सकरी वितरक नहर की एलाइनमेंट के अनुसार करीब 1980 मीटर लंबी और 44 मीटर चौड़ी नहर बनाई जा रही है। इसके दायरे में कई खसरा नंबर की जमीन आई है। हम बात कर रहे हैं खसरा नंबर 19/4 की, जिसका कुल रकबा 1.70 एकड़ है, जो शारदा बाई पति पवन अग्रवाल के नाम पर दर्ज है। वितरक नहर के लिए बनाई गई एलाइनमेंट की बात करें तो खसरा नंबर 19/4 से कुल एक चौथाई जमीन पर ही नहर निकल रही है। यानी कि करीब 40-45 डिसमिल जमीन पर, लेकिन शारदा अग्रवाल को 1.65 एकड़ जमीन के मुआवजे के रूप में दो किश्तों में क्रमश: 8876114.00 और 20471713.00 रुपए दिए गए हैं। मौके की बात करें तो उनकी जमीन पर से एक इंच नहर नहीं निकली है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस जमीन पर नहर नहीं बनाई जा रही है तो किस जमीन पर नहर निकाली जा रही है। उपलब्ध दस्तावेज के अनुसार खसरा नंबर 19/4 के सामने स्थित खसरा नंबर 39 की सरकारी जमीन पर पूरी की पूरी नहर निकाली जा रही है। सिंचाई विभाग के एलाइनमेंट और राजस्व अफसरों द्वारा बनाए गए नक्शे के अनुसार इससे आगे की नहर खसरा नंबर 40 से निकलेगी।

भूअर्जन अधिकारी ने ही स्पष्ट किया आगे दूसरे की जमीन है

राजस्व दस्तावेज के अनुसार खसरा नंबर 19/4 के आगे खसरा नंबर 40 शुरू हो जाता है। इसके बाद जिस जमीन पर नहर निकालने के लिए मार्किंग की गई है, वह जमीन खसरा नंबर 40/8 है, जो पवन अग्रवाल पिता राधेश्याम अग्रवाल के नाम पर दर्ज है। भूअर्जन अधिकारी द्वारा पारित अवार्ड में पवन अग्रवाल पिता राधेश्याम अग्रवाल का नाम भी शामिल है, किंतु उस अंतिम शासकीय अभिलेख में गंभीर कूटरचनाएं और कांटछांट करते हुए उस जमीन के एवज में मिलने वाली मुआवजा राशि को शारदा देवी पति पवन अग्रवाल को दे दिया गया है। हैरान करने वाली बात यह है कि खसरा नंबर 19/4 में शारदा देवी अग्रवाल का सालों से कब्जा है, जिस पर वह खेती करते रही है।  भूअर्जन अधिकारी द्वारा चलाई गई नोटशीट के अनुसार स्पष्ट कहा गया है कि पवन अग्रवाल पिता राधेश्याम अग्रवाल संगीता पति बीए मिश्रा द्वारा अभिलेख पेश करने पर मुआवजा दिया जाएगा। अधिनियम के अनुसार पवन अग्रवाल पिता राधेश्याम अग्रवाल को आज तक जमीन अधिग्रहण के संबंध में कोई भी सूचना तामील नहीं की गई है। 

भूअर्जन अधिकारी ने लिखाअधिसूचित भूमि में कोई परिवर्तन नहीं

21 जून 2019 को कोटा एसडीएम भूअर्जन अधिकारी लिखते हैं कि पूर्व में धारा 11 की अधिसूचना में प्रकाशित कुल रकबा 19.95 एकड़ (8.076 हेक्टेयर) भूमि के प्रकाशन की कार्रवाई की जा चुकी है। अत: पूर्व में प्रकाशित रकबे में किसी भी प्रकार परिवर्तन नहीं हुआ है।

प्राधिकरण की राशि का गबन

राजस्व विभाग का स्पष्ट आदेश है कि यदि अधिग्रहित की जाने वाली किसी जमीन को लेकर विवाद है तो उस जमीन की राशि को छत्तीसगढ़ प्राधिकरण के खाते में जमा करना है, लेकिन सकरी के पटवारी रहे मुकेश साहू तत्कालीन एसडीएम ने मुआवजा प्रकरण की सूची में ही कांटछांट कर माफियाओं से मिलकर राशि गबन कर ली है।

जानिए क्या कहते हैं अधिकारी

इस मामले की जानकारी अरपा भैंसाझार परियोजना के ईई, कोटा एसडीएम और संभागायुक्त डॉ. संजय अलंग तक पहुंच गई है। मीडिया को दिए गए बयान में अरपा भैंसाझार परियोजना के ईई यह कहकर अपना दामन बचा रहे हैं कि उनका काम एलाइनमेंट बनाकर राजस्व विभाग को देना था। मुआवजा बांटने का काम उन्हीं का है। इस मामले में उनका कोई लेना देना नहीं है। कोटा एसडीएम कहते हैं कि यह उनके समय का मामला नहीं है। संभागायुक्त डॉ. अलंग ने पूरे मामले में जांच कराने की बात कही है। उनका कहना है कि यदि कोई बीवन, खसरा और नक्शाा के आधार पर पूरा ब्योरा प्रस्तुत करेगा तो जांच करा दी जाएगी।