IAS और बिलासपुर कलेक्टर अवनीश शरण के पिता ने बेटे से कहा – मुझे जेल जाना है, तुम्हारी अनुमति जरूरी है… फिर जेल से लौटकर किया चौंकाने वाला खुलासा… क्या, जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर…
बिलासपुर आने के बाद मैंने IAS अवनीश से सेन्ट्रल जेल, बिलासपुर का भ्रमण करा देने को कहा। वह तुरत तैयार हो गया। मैने कहा कि बगैर तुमसे लिखित में अनुमति लिये मैं नहीं जाउंगा .....मुझे जेल के अंदर फोटोग्राफी भी करनी है ....।
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के तेज तर्रार IAS अफसर और बिलासपुर कलेक्टर अवनीश शरण किसी पहचान की मोहताज नहीं है। हाल ही में उनके पिता लोकेश शरण ने उनके पास आए और उन्होंने उनसे जो कहा, उसे सुनकर वे ठहाके लगाने से अपने आपको रोक नहीं सके। दरअसल, हुआ यूं कि IAS के पिता लोकेश शरण खुद लेखक, पत्रकार और एक शोधार्थी हैं। एक शोध के सिलसिले में वह बिलासपुर सेंट्रल जेल आये थे ।
छ्ग के जाने माने IAS अवनीश शरण के पिता ने सोशल मीडिया में छ्ग और खासकर न्यायधानी बिलासपुर को लेकर एक बड़ी जानकारी साझा की है।यह बहुत कम लोगो को पता होगा कि देश के महान कवि माखन लाल चतुर्वेदी ने पाठ्य पुस्तकों में पढ़ी जाने वाली लोकप्रिय कविता “पुष्प की अभिलाषा”की रचना बिलासपुर जेल में की थी। माखन लाल चतुर्वेदी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान सेंट्रल जेल बिलासपुर में बंद किये गए थे और तभी उन्होंने पुष्प की अभिलाषा की रचना की जिसे आज भी हम पाठ्य पुस्तको में पढ़ते हैं ।
ये है लोकेश शरण का पूरा पोस्ट
यादगार पल…!
काफी दिनों से आज-कल, करते-करते बिलासपुर आ ही गया। अध्ययन-अध्यापन के लिए कहां-कहां जाना है, इसकी सूची पहले ही बना कर रख लिया था। बिलासपुर से मेरी कई यादें जुडी हुई है। पहली बार 2012 में यहां आने का तब मौका मिला था जब अवनीश नगर निगम, बिलासपुर का कमिश्नर था। उन दिनों मैं अपने शोध-प्रबंध की तैयारी में जुटा था। तब यहां के प्रमुख शिक्षण संस्थानों व पुस्तकालयों से जुड़ने का अवसर मिला। उन दिनों ठाकुर रामसिंह सर बिलासपुर के कलेक्टर हुआ करते थे। उनसे लिखित अनुमति लेकर कुछ अभिलेखों का संग्रह करने का मौका भी मिला। आज अवनीश बिलासपुर के कलेक्टर पद पर पदस्थ है।
बिलासपुर आने के बाद मैने अवनीश से सेन्ट्रल जेल, बिलासपुर का भ्रमण करा देने को कहा। वह तुरत तैयार हो गया। मैने कहा कि बगैर तुमसे लिखित में अनुमति लिये मैं नहीं जाउंगा …..मुझे जेल के अंदर फोटोग्राफी भी करनी है ….। उसने काफी ठहाका लगाया और अपनी सहमति दे दी। फिर क्या था ! उसके नाम और पदनाम से आवेदन लिखा। कल उसके कार्यालय कक्ष में जाकर अपना आवेदन दिया। वहां भी आवेदन प्राप्त करने की तस्वीर लेने में आनाकानी करने लगा। वह मेरे आग्रह को ज्यादा देर तक टाल नहीं सका। आवेदन की पावती भी मिल गई। मैं तो भावविभोर हो रहा था। होता भी कैसे नहीं ? एक शोधार्थी पिता- अपने कलेक्टर पुत्र को आवेदन देकर किसी विशेष प्रयोजन के लिए अनुमति जो मांग रहा था ! शाम में जेल सुपरिटेंडेंट का अनुमति पत्र मिला।
आज सेन्ट्रल जेल, बिलासपुर पहुंचा। मेरे आने की सूचना जेल सुपरिटेंडेंट श्री खोमेश मंडावी सहित सभी स्टाफ को मिल चुकि थी। श्री मंडावी ने स्वतंत्रता सेनानियों की सूची उपलब्ध कराई जिन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान इस जेल में यातनाभरी जीवन गुजारी थी। उन्होंने जेल के क्रियाकलापों की विस्तार से जानकारी दी। बंदियों को कुटीर उद्योगों का प्रशिक्षण व उनके उत्पादन कार्य, उनकी पढ़ाई-लिखाई, वर्ग कक्ष के साथ-साथ पुस्तकालय को भी देखने का अवसर मिल। बताया गया कि पुस्तकालय में 11 हजार से अधिक पुस्तकों का संग्रह है। अपनी पुस्तक “भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में “कालापानी” की ऐतिहासिक भूमिका” जेल पुस्तकालय को उपहार के रुप में भेंट किया।
अफसोस इस बात का है कि पंडित माखनलाल चर्तुवेदी की स्मृतियों को संरक्षित नहीं किया जा सका। जेल परिसर में उनकी कोई प्रतिमा स्थापित नहीं कराई जा सकी है। जिस बैरक में रहकर उन्होंने बंदी जीवन व्यतीत किया था, जिस स्थान पर बैठकर “पुष्प की अभिलाषा” की रचना की थी-वे सभी स्थल ध्वस्त किये जा चुके है। बताया गया कि पुराने भवन धराशायी होने के कगार पर थे। इस कारण उन्हें 2018 में तोड़ कर वहां नये भवनों का निर्माण कराया गया है।
आशा ही नहीं अपितु मुझे पूर्ण विशवास है कि जिला प्रशासन व जेल प्रशासन एक महान स्वतंत्रता सेनानी की स्मृति को पुनर्जीवित करने की दिशा में कारगर व सार्थक पहल करेगा जो हमारी आने वाली पीढ़ी के लिये प्रेरणादायक सिद्ध हो सके।
आज के मौके पर ली गई कुछ तस्वीरों को आप सबों से साझा करते हुए मुझे प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है।
धन्यवाद।