बिलासपुर सर्किल: फदहाखार में फेंसिंग घोटाला को अंजाम देने रची बड़ी साजिश… टेंडर न निकालकर 7-8 ठेकेदारों को कागज में बांट दिया 52 लाख का काम… जबकि डीएफओ को 5 लाख से ज्यादा का अधिकार नहीं…

बिलासपुर। वन विभाग के बिलासपुर सर्किल के फदहाखार में 52 लाख रुपए के फेंसिंग घोटाले को रची गई साजिश परत-दर-परत उखड़ने लगी है। जिम्मेदारों ने भारी भरकम राशि की बंदरबांट करने के लिए 7-8 ठेकेदारों को मोहरा बनाया और उनके नाम पर काम जारी कर दिए। सूत्रों का दावा है कि 5० प्रतिशत से कम काम कराकर पूरा भुगतान कर दिया गया और अंतर की राशि को वापस ले ली गई।

बता दें कि बिलासपुर वन मंडल के बिलासपुर सर्किल स्थित फदहाखार-कोरमी खार में अच्छी-खासी जमीन है, जो खुली हुई थी। वन विभाग के जिम्मेदार अफसरों ने इस खुली जमीन को घ्ोरने की आड़ में अपनी कमाई का जरिया निकाल लिया। बात उस समय की है, जब यहां कुमार निशांत डीएफओ हुआ करते थ्ो।

सर्किल के प्रभारी रेंजर नायक ने इस्टीमेट पेश किया, जिसमें बताया गया कि पूरी जमीन को घेरने में करीब 76०० मीटर जाली तार बिछाना पड़ेगा। हरेक डेढ़ मीटर में लोहे का एक पोल लगाना होगा। यानी कि करीब 5००० पोल लगाए जाएंगे। मजदूरों का खर्च अलग आएगा। पूरे काम में करीब 52 लाख रुपए खर्च आएंगे।

तत्कालीन डीएफओ ने जाली तार फेंसिग के लिए 52 लाख रुपए की स्वीकृति दे दी। प्रभारी रेंजर नायक की देखरेख में 76०० मीटर में जाली तार का घेरा लगा दिया गया और ठेकेदार को गुपचुप तरीके से भुगतान भी हो गया। अब खुलासा यह हुआ है कि 76०० मीटर तार फेंसिंग के एक काम को कई ठेकेदारों को दिया गया। सूत्रों के दावे पर भरोसा करें तो रेंजर के इस्टीमेट के आधार पर 7-8 ठेकेदारों को काम दिया गया, वह भी किश्तों में, ताकि यह पता न चल पाए कि इस काम को एक नहीं, बल्कि अधिक ठेकेदार कर रहे हैं।

एक ही काम को अलग-अलग ठेकेदारों द्बारा कराए जाने का लाजिक नहीं समझ आया तो हमने इस बात की पड़ताल की। तहकीकात में बड़े चौंकाने वाले खुलासे हुए। दरअसल, डीएफओ को अधिकतम 5 लाख रुपए तक का काम स्वीकृत करने का अधिकार है। इससे अधिक की लागत वाले काम का टेंडर निकालना है। सर्किल के जिम्मेदारों ने इसी का तोड़ निकालते हुए 52 लाख के काम को अलग-अलग ठेकेदारों को दिलवा दिया।

अब आगे क्या…

तत्कालीन डीएफओ कुमार निशांत ने ही इस काम का पूरा भुगतान किया है और वो भी सर्किल के जिम्मेदार वन अफसरों के मूल्यांकन और सत्यापन के आधार पर। विभागीय जानकार बताते हैं कि इस मामले की शिकायत पहले भी हो चुकी है, लेकिन सर्किल के अफसरों ने इस मामले को दबवा दिया था।

मीडिया में यह मामला एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है। इसलिए कहा जा रहा है कि मामले की जांच बिठा दी गई है। यही वजह है कि सर्किल में होने वाली कुछ प्रक्रियाओं को रोक दी गई है। हालांकि अभी वन मंडल के बड़े अफसर बाहर हैं।

फाइल खुलेगी तो कई नपेंगे…

विभागीय सूत्रों का कहना है कि इस मामले की फाइल खुलेगी तो कई जिम्मेदार अफसर नपेंगे। दरअसल, सर्किल के अफसरों ने जो फाइल पुटअप की है, उसमें ही कई तरह की खामियां हैं। काम कराने का ठेका तो ठेकेदारों को दिया गया है, लेकिन तार से लेकर पोल की सप्लाई सर्किल के एक अफसर ने की है। वह भी गुणवत्ताहीन। ऊपर से कम सामग्री। हालांकि हम विभागीय सूत्रों के दावों की पुष्टि इसलिए नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि अभी तक इस मामले की जांच नहीं हुई है।

इस तरह से दिया फर्जीवाड़े का अंजाम…

वन विभाग के इस्टीमेट के अनुसार 76०० मीटर में तार फेंसिग में 5००० लोहे के एंगल लगाए गए हैं। यानी कि हर डेढ़ मीटर में एक पोल। 76०० मीटर फेंसिग तार को लगाने में आई लागत 52 लाख रुपए का हिसाब करें तो हर डेढ़ मीटर का खर्च 1०4० रुपए आ रहा है। इसमें जाली तार, पोल और मजदूरी खर्च शामिल हैं।

दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन मार्केट अमेजन पर जारी रेट पर नजर डालें तो पता चलता है कि 8 फीट लंबी एक लोहे की पोल की कीमत 1०० से 12० रुपए है। 6 फीट ऊंची और 5० फीट लंबे जाली तार की कीमत करीब 5००० है। यानी कि एक फीट जाली तार की कीमत करीब 1०० रुपए हो रही है। बता दें कि एक मीटर बराबर 3.2 फीट होता है। यानी कि एक मीटर लंबे जाली तार की कीमत 32० रुपए हो रही है और डेढ़ मीटर जाली तार का रेट 48० है।

इसमें पोल का रेट 12० रुपए को जोड़ दें तो डेढ़ मीटर जाली तार की फेंसिग की कीमत 6०० रुपए हो रही है, वह भी चिल्हर में। थोक के भाव में बात करें तो यह रेट अधिकतम 5०० रुपए पड़ेगा। इसमें हर डेढ़ मीटर फेंसिग की मजदूरी 5० रुपए जोड़ दें तो पूरी लागत 55० रुपए से अधिक नहीं होगी। इस हिसाब से 76०० मीटर फेंसिग की अधिकतम लागत 27 लाख 5० हजार रुपए हो रही है, जबकि वन विभाग ने ठेकेदार को 52 लाख रुपए का भुगतान किया गया है। इस हिसाब से 24 लाख 5० हजार रुपए का बेजा भुगतान किया गया है।

घोटाले के लिए पहले ऐसे रची गई थी साजिश…

फदहाखार में जाली तार फेंसिग में घोटाले को साजिश के तहत अंजाम दिया गया है। दरअसल, वन विभाग ने इस काम की शुरुआत जनवरी 2०22 में की थी। उसी समय लोहे के कुछ एंगल को गायब करा दिया गया और थाने में रिपोर्ट लिखा दी गई कि यहां से लोहे के 4० एंगल चोरी हो गए हैं। थाने में लिखाई गई रिपोर्ट को वन विभाग के जिम्मेदारों और ठेकेदार ने हथियार की तरह इस्तेमाल किया और जहां 5००० लोहे के एंगल लगाने थे, वहां 3००० से भी कम एंगल लगा दिए गए।

एक एंगल को खरीदा 166 रुपए में…

वन विभाग ने लोहे के एक एंगल की कीमत 166 रुपए बताई है। थाने में की गई रिपोर्ट पर नजर डालें तो वन रक्षक ने 28 जनवरी 2०22 को सिरगिट्?टी थाने में रिपोर्ट लिखाई है। उसने बताया है कि रात में मौके से 24 एंगल चोरी हो गए, जिसकी कीमत 4००० रुपए है। यानी कि एक एंगल की कीमत वन विभाग ने 166.66 रुपए बताई है। इसी दर से ठेकेदार को भी भुगतान किया गया है।