बिलासपुर: कलेक्टर साहब… आदिवासी हॉस्टल के क्वैरेंटाइन सेंटर में दी जा रही भूखे रहने की सजा… सुबह नहीं बनता नाश्ता… दोपहर में देते हैं आधा पेट भोजन… मासूम बच्चों का क्या कसूर…

बिलासपुर। जरहाभाठा स्थित आदिवासी हॉस्टल के क्वैरेंटाइन सेंटर में रुके हुए मजदूर परिवार यहां आकर खुद को कोस रहे हैं। साथ में छोटे-छोटे बच्चे हैं, जिन्हें सुबह से दोपहर 1 बजे भूखे रहना पड़ रहा है। दरअसल, इस क्वैरेंटाइन सेंटर में सुबह किसी तरह का नाश्ता नहीं बनता।

सीधे दोपहर 1 बजे भोजन परोसा जाता है। तब तक बच्चे भूख के कारण तड़पते रहते हैं। मजदूर परिवार क्वैरेंटाइन सेंटर में नियुक्त अधिकारी-कर्मचारियों से नाश्ता देने के लिए मिन्नतें जरूर करते हैं, लेकिन उनके हाथ भी बंधे हुए हैं, क्योंकि विभाग की ओर से नाश्ता बनाने के लिए फंड ही नहीं दिया जा रहा है।

इन दिनों कोरोना वायरस का कहर चल रहा है। इस बीच कई बार लॉकडाउन बढ़ाया गया, जिसके चलते शुरुआत में प्रदेश से पलायन कर दूसरे राज्य गए मजदूर वहीं फंस गए थे। केंद्र सरकार से निर्देश मिलने पर प्रदेश सरकार ने दूसरे राज्यों में फंसे हुए मजदूरों की सुध ली और श्रमिक स्पेशल ट्रेन के जरिए मजदूरों को दूसरे राज्यों से छत्तीसगढ़ लाया जा रहा है।

इसी कड़ी में बीते 21 और 22 मई को अहमदाबाद से 518 मजदूरों को श्रमिक स्पेशल ट्रेन से बिलासपुर लाया गया। इन मजदूरों को आदिवासी विभाग के जरहाभाठा स्थित हॉस्टल में ठहराया गया है। मजदूर परिवारों के साथ करीब 100 बच्चे हैं। आजकल.इंफो की टीम ने मंगलवार सुबह आदिवासी हॉस्टल स्थित क्वैरेंटाइन सेंटर का जायजा लिया तो पता चला कि मजदूर यहां आकर खुद को कोस रहे हैं।

नाम नहीं छापने की शर्त पर एक मजदूर ने बताया कि जब से वे यहां आए हैं, तब से वे सुबह का नाश्ता क्या होता है, यह जानते ही नहीं। जबकि हर मजदूर परिवार में छोटे-छोटे बच्चे हैं। दोपहर एक बजे के आसपास भोजन परोसा जाता है, वह भी आधा पेट।

एक मजदूर ने बताया कि सुबह से दोपहर 1 बजे तक बच्चे भूख के कारण बेहाल रहते हैं। बच्चे नाश्ता की मांग करते हैं, लेकिन यहां नाश्ता बनता ही नहीं। बच्चों को किसी तरह पानी पिलाकर दोपहर तक इंतजार कराते हैं। तब तक बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल हो जाता है।

एक मजदूर ने बताया कि क्वैरेंटाइन सेंटर में नियुक्त अधिकारी-कर्मचारियों से जब नाश्ता की मांग करते हैं तो वे सीधे हाथ खड़े कर देते हैं। वे दो टूक कहते हैं कि विभाग से उन्हें न तो नाश्ता बनाने के लिए सामान दिया गया है और न ही फंड। दोपहर और रात में खाना बनाने के लिए सामान दिया गया है, जिसे बनाकर दिया जाता है।

साबुन देते हैं न टूटपेस्ट

मजदूरों के अनुसार क्वैरेंटाइन सेंटर में रखते समय अधिकारियों ने उन्हें बताया था कि यहां जरूरत के सारे सामान मिलेंगे। उन्हें किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है। वे यहां इत्मिनान से क्वैरेंटाइन समय को गुजारें।

उस समय उन्हें लगा कि अपने प्रदेश आकर अब उनकी परेशानी खत्म हो गई है, लेकिन उन्हें यहां तो नहाने के लिए न तो साबुन दिया जाता है और न ही दांतों की सफाई के लिए टूटपेस्ट।

किसी तरह की नहीं की गई जांच

मजदूरों के अनुसार ट्रेन से उतारने के बाद उन्हें सीधे क्वैरेंटाइन सेंटर लाकर रुकवाया गया है। यहां रुके हुए किसी भी मजदूर की किसी तरह की जांच नहीं की गई है।  

सहायक आयुक्त ने फोन नहीं उठाया

इस मामले में पक्ष जानने और मजदूरों के आरोपों की सच्चाई जानने के लिए जब एसी ट्राइबल सीएल जायसवाल से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो मोबाइल में रिंग जाने के बाद भी उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया।