छत्तीसगढ़: हाईकोर्ट ने कहा- वेतनमान संशोधन के बाद परिवार नियोजन ऑपरेशन अग्रिम वेतनवृद्धि के लाभ का दावा नहीं हो सकता… क्योंकि…
बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि कर्मचारी अपनी पदोन्नति या वेतनमान संशोधन के बाद परिवार नियोजन ऑपरेशन के लिए दी गई अग्रिम वेतनवृद्धि के लाभ का दावा नहीं कर सकते।
हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस पार्थ साहू की डीबी ने रजिस्ट्रार जनरल, हाईकोर्ट छत्तीसगढ़ बनाम फनेंद्र कुमार बिसेन के मामले में इस आशय का निर्णय दिया। प्रतिवादी फनेंद्र कुमार बिसेन को शुरू में 1992 में सहायक ग्रेड- 3 के रूप में नियुक्त किया गया था। 1999 में उनकी पत्नी द्बारा परिवार नियोजन ऑपरेशन के बाद उन्हें राज्य सरकार की नीति के अनुसार दो अग्रिम वेतनवृद्धि दी गई थी। वेतनवृद्धि दिसंबर 2००4 तक जारी रही।
जनवरी 2००5 में सहायक ग्रेड-3 में उनकी पदोन्नति के बाद वेतनवृद्धि बंद कर दी गई, जिससे लंबे समय तक कानूनी विवाद चला। वेतनवृद्धि को जारी रखने के लिए 2०18 में बिसेन के प्रतिनिधित्व को सामान्य प्रशासन विभाग ने खारिज कर दिया, जिसके बाद उन्होंने एक रिट याचिका पेश की। एकलपीठ ने उनकी याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर राज्य को अक्टूबर 2०15 तक वेतनवृद्धि को ध्यान में रखते हुए उनका वेतन तय करने और किसी भी बकाया का भुगतान करने का निर्देश दिया।
मामले में कानूनी मुद्दा
प्राथमिक कानूनी मुद्दा यह था कि क्या परिवार नियोजन के लिए दी गई वेतनवृद्धि पदोन्नति या वेतनमान के संशोधन के बाद जारी रहनी चाहिए। अपीलकर्ता रजिस्ट्रार हाईकोर्ट ने तर्क दिया कि वेतनवृद्धि उस समय के वेतनमान के लिए विशिष्ट थी और प्रारंभिक अनुदान से आगे नहीं बढ़ना चाहिए। प्रतिवादी कर्मचारी ने तर्क दिया कि वेतनवृद्धि जारी रहनी चाहिए, क्योंकि इसे उन्हें शुरू में प्रोत्साहन के रूप में प्रदान किया गया था।
मप्र हाईकोर्ट के निर्णयों का हवाला
विभागीय पीठ ने इसी तरह के मुद्दों पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के परस्पर विरोधी निर्णयों का हवाला दिया। एके केशरवानी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य का मामला निर्णायक था, जहां यह माना गया था कि इस तरह की वेतनवृद्धि को व्यक्तिगत वेतन के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। हालांकि मध्यप्रदेश राज्य बनाम डीडी देखने में यह निर्णय दिया गया था कि वेतनमान के लिए विशिष्ट वेतनवृद्धि संशोधित वेतनमान में नहीं आती है।
अंतत:, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आरके चतुर्वेदी बनाम मध्यप्रदेश राज्य में पूर्ण पीठ के निर्णय के साथ तालमेल कर निष्कर्ष निकाला कि जिस कर्मचारी का वेतन संशोधित किया गया है, वह अपनी पदोन्नति या उच्च वेतनमान की स्थिति में अग्रिम वेतनवृद्धि का लाभ नहीं ले सकता है। डिवीजन बेंच ने बिसेन की रिट याचिका खारिज कर एकलपीठ का आदेश रद्द कर दिया।