बिलासपुर: कलेक्टर की यह कैसी कार्रवाई… नजूल जमीन का फर्जीवाड़ा पर FIR और आदिवासी जमीन बेचने वाले को अभयदान… सवाल यह कि भूमाफिया संजय के आगे क्यों बेबस है राजस्व प्रशासन…

बिलासपुर Bilaspur News। शासकीय भूमि और आदिवासी जमीन पर अवैध कारोबार के दो मामलों ने कलेक्टर अवनीश शरण की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल, कलेक्टर ने कुदुदंड स्थित नजूल भूमि को टुकड़ों में काटकर बेचने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई, वहीं दूसरी ओर बिरकोना स्थित आदिवासी भूमि में अवैध प्लाटिंग करने वाले भू माफिया संजय ध्रुव के खिलाफ कार्रवाई करने से प्रशासन के हाथ कांप रहे हैं। चर्चा यह है कि आखिर संजय ध्रुव का ऐसा कौन सा रसूख हैं, जिससे उस हाथ डालने से राजस्व अफसर कतरा रहे हैं।

कुदुदंड की शासकीय भूमि पर कार्रवाई

बिलासपुर के कुदुदंड में सरकारी भूमि पर अवैध प्लाटिंग का मामला सामने आया, जिसमें करोड़ों की भूमि को 54 टुकड़ों में बेच दिया गया था। यह भूमि पहले भूपेंद्र राव तामस्कर को लीज पर दी गई थी, और 2015 में लीज की अवधि खत्म होने पर उसे 2045 तक बढ़ा दिया गया था। तामस्कर ने बिना अनुमति और बिना शर्तों का पालन किए इस भूमि को टुकड़ों में बेच दिया। प्रशासन ने इस पर कड़ी कार्रवाई करते हुए लीज को निरस्त कर दिया और जमीन को वापस शासकीय रिकार्ड में दर्ज कर लिया। इसके साथ ही भूमाफिया और लीजधारकों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवाई गई है।

बता दें कि इस मामले में कलेक्टर अवनीश शरण के निर्देश पर पांच सदस्यीय जांच टीम गठित की गई थी, जिसने यह पाया कि न तो नगर निगम से अनुमति ली गई और न ही टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से ले आउट पास कराया गया। इसके बावजूद उप पंजीयक ने सभी 54 टुकड़ों की रजिस्ट्री कर दी थी। यह कार्रवाई न सिर्फ बिलासपुर बल्कि पूरे प्रदेश में सराही गई है, जिससे प्रशासन की सख्त भूमिका को उजागर किया गया।

बिरकोना की आदिवासी भूमि मामले में प्रशासन बैकफुट पर 

वहीं, दूसरी ओर बिरकोना में आदिवासी भूमि पर अवैध प्लाटिंग का मामला सामने आया है, जहां नगर निगम और राजस्व अधिकारियों ने एक समय छोटी-मोटी कार्रवाई की थी, लेकिन बाद में सब कुछ फिर से पहले जैसा हो गया। आरोप है कि यहां की जमीन का फर्जीवाड़ा करने वाले संजय ध्रुव को प्रशासन ने अभयदान दे दिया। निगम आयुक्त ने कहा था कि इस मामले में जांच के बाद एफआईआर कराई जाएगी, लेकिन अब तक इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।

यह मामला प्रशासन की दोहरी नीति को उजागर करता है, जहां एक ओर कुदुदंड में सख्त कार्रवाई की गई, वहीं दूसरी ओर बिरकोना में इस तरह के मामलों को नजरअंदाज किया जा रहा है। यह स्थिति आम जनता के लिए असमंजस पैदा कर रही है। सवाल ये है कि बिरकोना में क्या यह सब कुछ सेटिंग और सत्ताधारी लोगों की आड़ में हो रहा है?

क्या है प्रशासन की दोहरी नीति?

यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि एक ही प्रशासन द्वारा दो अलग-अलग रवैया अपनाया गया है। कुदुदंड में भूमि के कब्जे को वापस लेने के बाद एफआईआर दर्ज करवाई गई और भूमाफियाओं पर कार्रवाई की गई, जबकि बिरकोना में प्रशासन ने केवल दिखावे की कार्रवाई की। यहां यह समझना मुश्किल हो रहा है कि आखिर क्यों एक तरफ कार्रवाई की जा रही है और दूसरी ओर चहेतों को बचाया जा रहा है।

क्या सेटिंग चल रही है?

बिलासपुर में बिरकोना के आदिवासी भूमि के मामले में कार्रवाई में देरी और एफआईआर न कराए जाने की वजह से यह सवाल उठ रहा है कि कहीं यहां प्रशासन की सेटिंग तो नहीं हो गई? आदिवासी भूमि के मामलों में इस तरह की ढील देने से यह भी आशंका जताई जा रही है कि जमीन के माफिया और अधिकारियों के बीच कोई गहरी मिलीभगत है।